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Reporting the underreported threat of nuclear weapons and efforts by those striving for a nuclear free world. A project of The Non-Profit International Press Syndicate Japan and its overseas partners in partnership with Soka Gakkai International in consultative status with ECOSOC since 2009.

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Bangladesh Opting for Peace Rather Than Nuclear Arms – Hindi

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बांग्लादेश परमाणु अस्त्रों की बजाय शांति को चुन रहा है

नईमुल हक द्वारा विश्लेषण

ढाका, बांग्लादेश (आईडीएन) – परमाणु हमले के बढ़ते ख़तरे के बावजूद बांग्लादेश, जो कि परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्रों से घिरा है, ने न्यूक्लियर क्लब में शामिल होने की बजाय एक शांतिप्रिय देश बने रहना पसंद किया है।

वैश्विक शांति और अंतरराष्ट्रीय परमाणु शांति संधियों का पालन करने की राजनितिक इच्छा शक्ति की पुष्टि करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यद्यपि शीत युद्ध समाप्त हो गया है तथापि परमाणु हमलों का ख़तरा अब भी बना हुआ है।

पृथक लेकिन संयुक्त आवाज़ में वे कहते हैं कि भले ही वैश्विक परमाणु युद्ध का ख़तरा कम हुआ है लेकिन अधिक से अधिक देशों द्वारा परमाणु अस्त्रों की तकनीक हासिल कर लेने से परमाणु हमले का खतरा काफ़ी हद तक बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त आतंकवादियों द्वारा सामूहिक विनाश के हथियार प्राप्त करने की चाह ने इस ख़तरे को और बढ़ा दिया है।

वे कहते हैं जब तक इन हमलों का ख़तरा बन हुआ है बांग्लादेश को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और ख़ुफ़िया तंत्र को पुख़्ता करना होगा और परमाणु हमले से पैदा होने वाले विकिरण से बचने के लिए रणनीति बनानी होगी।

चीन-भारत-अमेरिका परमाणु ‘छाता सुरक्षा’ के मुद्दे का जिक्र करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा विश्लेषक, ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) एम सख़ावत हुसैन ने आईडीएन को बताया, “बांग्लादेश न तो एक लड़ाकू देश है और न ही उसे कम से कम इस सदी में परमाणु हमलों का कोई ख़तरा है। वर्तमान में कोई आसन्न बाहरी ख़तरा नहीं है लेकिन ज़ाहिर है, भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।”

हुसैन ने परमाणु हथियार रखने के तर्क पर सवाल उठाया और कहा कि परमाणु हथियार विकसित करने का सपना बहुत ख़तरनाक होगा।

उन्होंने पूछा, “हम हमला क्यों करते हैं या हम किसे अपना दुश्मन मानते हैं? “सामान्य तौर पर, यदि आप ध्यान दें तो पाएंगे कि परमाणु हथियार रखने वाले राष्ट्रों के दुश्मन हैं, उदाहरण के लिए, अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन सोवियत संघ था, भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे का मुकाबला करने के लिए हथियार विकसित किये हैं, उत्तर कोरिया को अपने दुश्मनों दक्षिण कोरिया और अमेरिका से ख़तरा है और इसी तरह से इज़राइल ने अरब देशों के ख़तरे से निपटने के लिए परमाणु हथियार विकसित हैं।”

उन्होंने तर्क दिया कि “यदि कभी भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ा तो भौगोलिक दृष्टि से पड़ोसी देश होने के कारण संभावित बम हमलों से उत्पन्न होने वाली रेडियोधर्मिता का ख़तरा बांग्लादेश के लिए भी होगा। ऐसे मामले में, अन्य देशों की तरह, हमें भी अपने नागरिकों को परमाणु हमले का जवाब देने की बजाय आवश्यक जानकारी दे कर विकिरण से बचने के लिए तैयार करना चाहिए।”

हुसैन ने परमाणु हमले से सुरक्षा के लिए एक मज़बूत परमाणु खुफिया प्रणाली की आवश्यकता पर भी बल दिया।

मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद अब्दुर रशीद, जो एक प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषक हैं, ने आईडीएन को बताया, “आज की वैश्विक सुरक्षा के युग में ‘परमाणु क्लब’ में प्रवेश करना एक बेकार निवेश होगा, विशेषकर जबकि बांग्लादेश अभी एक बढ़ती अर्थव्यवस्था है। क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, परमाणु हथियार विकसित करने का सपना देखने का कोई कारण नहीं है। “

संघर्ष, क़ानून और विकास अध्ययन संस्थान (आईसीएलडीएस) के कार्यकारी निदेशक रशीद ने कहा: “बांग्लादेश को भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले संभावित परमाणु युद्ध के ख़तरे को मद्देनज़र रखते हुए विकिरण से बचने की रणनीति बनाने पर ध्यान देना चाहिए।” हम अपनी जनता के लिए सबसे अच्छा काम यही कर सकते हैं कि उन्हें इस तरह के हमले से बचा सकें और लगभग सभी देश अपने नागरिकों को परमाणु विकिरण से बचाने के लिए अपनी रणनीति तैयार करते हैं।”

उन्होंने अनुकूल तैयारी के लिए परमाणु ख़तरों का पता लगाने के लिए ख़ुफ़िया तंत्र को भी उन्नत करने पर ज़ोर दिया। “किसी भी अग्रिम ख़तरे से सावधान करने के लिए एक मज़बूत ख़ुफ़िया विंग एक उत्तम हथियार साबित होगा।”

अक्षय ऊर्जा के विशेषज्ञ एम.ए. गोफरन ने आईडीएन को बताया, “जब दुनिया में परमाणु हथियारों की दौड़ को ख़त्म करने की कोशिशें हो रही हैं ऐसे में बांग्लादेश जैसे ग़रीब राष्ट्र के लिए अत्यंत महंगे और असुरक्षित परमाणु हथियारों के पीछे भागने का कोई औचित्य नहीं है। हिरोशिमा और नागासाकी में सामूहिक विनाश के हथियारों द्वारा मचाई गई तबाही देख कर यह स्पष्ट हो गया है कि वास्तव में युद्ध में परमाणु हमला कोई विकल्प नहीं है।”

‘छाता सुरक्षा’ के मुद्दे पर, गोफरन ने कहा, “भारत या अमेरिका जैसे परमाणु क्षमता वाले विशाल देश भी अपने मित्र राष्ट्रों की ‘सुरक्षा’ की गारंटी नहीं दे सकते हैं। परमाणु बम महज़ एक तोप का गोला नहीं है। किसी देश द्वारा अपने मित्र राष्ट्र की तरफ से लड़ने के लिए दुश्मन पर किया गया परमाणु बम हमला उस राष्ट्र को भी जवाबी परमाणु हमले के ख़तरे में डाल देता है। ऐसे में कोई भी परमाणु महाशक्ति इतनी ग़ैर जिम्मेदाराना हरकत क्यों करेगी?”

वरिष्ठ पत्रकार अफसान चौधरी ने बांग्लादेश के लिए किसी भी परमाणु खतरे की संभावना से इनकार करते हुए कहा: “हम सुरक्षित हैं क्योंकि हमारे ऊपर परमाणु हथियारों से हमला कौन करना चाहेगा? भारत हमारे चारों तरफ है और जब तक वो हम पर हमला नहीं करता, जो कि लगभग असंभव है, हम सुरक्षित हैं। हम किसी भी देश के लिए कोई खतरा नहीं हैं।”

वर्तमान ऊर्जा नीति और परमाणु ईंधन प्रबंधन क्षमता के मद्देनज़र, अफसान ने कहा, “हम इस तरह की परमाणु प्रौद्योगिकी (हथियार) को संभालने के योग्य नहीं हैं। और हम किस पर हमला करेंगे? वैश्विक सुरक्षा के संदर्भ में, परमाणु हथियार विकसित करने का कोई मतलब नहीं होगा। मुझे नहीं लगता बांग्लादेश की कोई भी सरकार परमाणु कार्यक्रम अपनाएगी।”

मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) मोहम्मद अली सिकदर, जो एक राजनीतिक-सुरक्षा विश्लेषक हैं, ने आईडीएन को बताया, “हम हमेशा एक मित्रतापूर्ण राष्ट्र रहे हैं और यह मित्रता का भाव हमारे राजनीतिक इतिहास में गहराई में अंतर्निहित है। हमने अतीत में कभी संघर्ष को बढ़ावा नहीं दिया और इसलिए हमारे कोई परमाणु प्रतिद्विन्दी नहीं हैं। वास्तव में, मुझे हमारे असुरक्षित महसूस करने का कोई कारण नहीं दिखता।”

सिकदर के अनुसार, “पड़ोसी परमाणु दिग्गज – भारत और चीन – हमेशा हमारे करीबी सहयोगी रहे हैं। वर्तमान में, भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बांग्लादेश के लिए किसी भी प्रकार का परमाणु खतरा नहीं है। इसलिए, हमें फ़िलहाल परमाणु हथियार क्षमता विकसित करने के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है।”

हालांकि, उन्होंने कहा, “हमारी बाह्य खुफ़िया प्रणाली उन्नत होनी चाहिए। इसके लिए सबसे अच्छा यह होगा कि हम उन्नत ख़ुफिया प्रौद्योगिकी को अपनाते रहें। इस प्रकार हम किसी भी तरह के संभावित ख़तरे के बारे में पहले ही जान जाएंगे।”

बांग्लादेश परमाणु ऊर्जा आयोग (बीएईसी) के अध्यक्ष एम. अली ज़ुल्करानैन ने आईडीएन को बताया कि बांग्लादेश का परमाणु कार्यक्रम हमेशा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।

उन्होंने कहा कि बीएईसी अपने अनुसंधान (अधिकांश चिकित्सा) और विकास के कार्य समाज की आवश्यकताओं और परमाणु प्रौद्योगिकी की उन्नति के मद्देनज़र कर रहा है। आईएनपीआरओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय गतिविधियों के माध्यम से, बीएईसी गंभीर दुर्घटनाओं को रोकने और उनके परिणामों को कम करने के लिए अभिनव रिएक्टर अवधारणा और भविष्य में परमाणु ऊर्जा प्रणालियों के लिए परमाणु ईंधन और ईंधन चक्र के विश्लेषण के क्षेत्रों में काम कर रहा है। “

उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश “परमाणु अनुसंधान गतिविधियों में अपनी विशेषज्ञता के कारण परमाणु शक्ति के उपयोग और इससे संबंधित अनुसन्धान करने के लिए कुछ अन्य विकासशील देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है।” उन्होंने आगे कहा, “परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए बांग्लादेश का दुनिया में निष्कलंक इतिहास रहा है और हमने परमाणु अप्रसार की लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किये हुए हैं।”

आईडीएन ने नागरिक समाज के कई क्षेत्रों के लोगों से भी बात की जिनमें शिक्षक, पूर्व सरकारी और गैर-सरकारी अधिकारी, पत्रकार और व्यवसायी भी शामिल थे। सभी ने एक सुर में, शांति को बढ़ावा देने की बात कही और परमाणु दौड़ के विचार को हास्यास्पद बताते हुए खारिज़ कर दिया।

एक अनुभवी बैंकर ने कहा, “बांग्लादेश दक्षिण एशिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और परमाणु हथियारों की महत्वाकांक्षा इस वृद्धि को तुरंत ख़तरे में डाल देगी।”

एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के एक अनुभवी शिक्षक ने कहा, “सबसे पहले, हमें यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या बांग्लादेश परमाणु क्लब का सदस्य होने की कीमत चुकाने को तैयार है। यह बेहद महंगा है और बहुत ही असुरक्षित है। दोनों आधार पर, बांग्लादेश के पास मौजूदा आर्थिक विकास से समृद्ध होने के आलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।” [आईडीएन-InDepthNews – 25 जून 2016]

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